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Showing posts from November, 2008

समझौते के तहत हुई राज की गिरफ्तारी

अचानक खबर आई कि राज ठाकरे सरेंडर करने जा रहे हैं। 2 बजे खबर आई कि वो मजगांव की अदालत में सरेंडर करने के लिये निकले, 3 बजे खबर आई कि मुंबई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और ठीक 4 बजे खबर आई कि उन्हें जमानत मिल गई। 2 घंटे में पूरा खेल खत्म हो गया। राजनीतिक पटल पर "सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे " वाली कहावत की ये एकदम ताजा मिसाल है। उत्तरभारतियों के खिलाफ भडकाऊ भाषण देने के आरोप में जमेदपुर की अदालत में एक वकील ने मामला दर्ज कराया। कोर्ट ने राज के खिलाफ नोटिस जारी किया। जब वो नहीं लौटे तो उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया। ये वारंट पहुंचा मुंबई पुलिस के पास जिसे वारंट की तामील करते हुए राज ठाकरे को पकड कर जमशेदपुर की अदालत के सामने हाजिर करना था।महाराष्ट्र सरकार के लिये ये दुविधा वाली हालत थी क्योंकि राज की गिरफ्तारी का मतलब था फिरसे राज्य में हिंसक वारदातों का होना, कानून व्यवस्था की हालत का खराब होना। सरकार अगर राज के खिलाफ कार्रवाई न करती तो न केवल न्यायिक प्रक्रिया की अवमानना होती बल्कि सरकार को केंद्र की ओर दबाव का भी सामना करना पडता, क्योंकि केंद्र सरकार खुद बि

कायरता का जवाब कायरता है हिंदू आतंकवाद

मुंबई, हैद्राबाद, जयपुर, बैंगलोर, अहमदाबाद, दिल्ली में जब भी बम धमाके हुए हमने कई राजनेताओं, धर्मगुरूओं, समाजसेवकों के मुख से बार बार यही वाक्य सुना - "ये एक कायरतापूर्ण कृत्य है।" मैं बिलकुल इस कथन से सहमत हूं। धर्म के नाम पर इस तरह से बेगुनाह लोगों की जान लेना वाकई में धिक्कारने योग्य है। मैं ये मानता हूं कि जो लोग अदालत के सामने इन बमकांड के लिये दोषी पाये जाएं उन्हें बिना किसी दया के फांसीं पर लटका दिया जाना चाहिये (वैसे फांसीं की सजा भी ऐसे लोगों के लिये कम ही नजर आती है) मानवाधिकार का राग अलापने वाले मृत्यूदंड विरोधियों को तनिक भी तरजीह नहीं दी जानी चाहिये...लेकिन यही सलूक सभी के साथ होना चाहिये...चाहे वो आतंकी किसी भी धर्म में विश्वास रखने वाला हो...वे लोग जो हाल ही में मालेगांव बम धमाकों के बाद ये कह रहे हैं कि ये धमाका हिंदुओं का जवाब था...प्रतिक्रिया थी...गुस्सा था...तो उनसे मैं सहमत नहीं हूं। इस मामले में दोगली सोच नहीं हो सकती। साध्वी, ले.कर्नल पुरोहित और उनके सहआरोपियों ने मालेगांव में धमाके किये या नहीं इसका फैसला न्यायिक प्रक्रिया करेगी..लेकिन मान लीजिये कि ये

हिंदू आतंकवाद - नांदेड धमाके से मिले थे संकेत

हिंदू आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है ये बात एटीएस और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को साल 2006 में ही पता चल गई थी। उस वक्त नांदेड में हुए बम धमाके की तहकीकात में ही ये बात साफ हो गई थी कि कई कट्टरपंथी एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन उस घटना से हासिल जानकारी को अनदेखा किया गया और नतीजतन कट्टरपंथी अपने मंसूबे में कामियाब हो गये। इसका सबूत है नांदेड धमाके के एक गवाह का बयान, जिसके मुताबिक उसने नागपुर के भोसला मिलिटरी स्कूल में कट्टरपंथियों की ट्रेनिंग देखी और पाया कि युवाओं में नफरत का जहर भरने में फौज और आईबी के पूर्व अफसर भी साथ दे रहे थे। ये बयान है नांदेड धमाके के गवाह समतकुमार भाटे का जो उन्होने एटीएस को दिया था। भाटे फिलीपिंस की लडाकू कला शॉर्ट स्टिक के जानकार हैं। साल 2000 में उन्हें बजरंग दल की ओर से बुलावा आया कि भाटे उनके कार्यकर्ताओं को भी इस कला कि ट्रेनिंग दें। ट्रेनिंग का ठिकाना था नागपुर का भोसला मिलिट्री स्कूल। भाटे ट्रेनिंग के लिये चले तो गये, लेकिन वहां जाकर उन्होने जो कुछ भी देखा उसने उन्हे हिलाकर रख दिया।) “ मई 2000 में मैं बजरंग दल के शिविर मे