डी.शिवानंदन के साथ पहला एनकाउंटर...

"सर अगर आप नाजिम रिजवी से डरते हैं तो बिना उसका नाम लिये मुझे कैमरे पर बाईट दे दीजिये।"
मेरे मुंह से ये शब्द निकले ही थे कि जैसे मुंबई पुलिस के क्राईम ब्रांच के दफ्तर में ज्वालामुखी फट पडा। क्राईम ब्रांच के मुखिया डी.शिवानंदन मुझपर बरस पडे।" Do you know to whom are you talking. You are in front of D.Sivanandhan, Joint Commissioner of Mumbai Crime Branch...अगर मैं नाजिम रिजवी जैसे मादर#$ ..से डरता होता तो क्या ये कुर्सी पर बैठता। शिवानंदन किसी से भी नहीं डरता। चलो अपना कैमरा ऑन करो... जो पूछने का है पूछो..मैं साले का नाम लेकर बोलेगा."
शिवानंदन के गुस्से को देखकर तो एक पल मुझे लगा कि कहीं वो मेरा ही एनकाउंटर न करवा दें। बात साल 1999 की है जब शिवानंदन मुंबई के तमाम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा, दया नायक, विजय सालस्कर, प्रफुल्ल भोसले जैसे एनकाउंटर स्पेलिस्ट अफसरों के बॉस हुआ करते थे। डी.शिवानंदन से ये मेरी पहली मुलाकात थी। मेरे तत्कालीन बॉस(और मौजूदा भी) मिलिदं खांडेकर ने मुझे अंडरवर्लड और बॉलीवुड के रिश्तों पर शिवानंदन का इंटरव्यू करने के लिये कहा था। उन दिनों ये खबर आई थी कि फिल्म चोरी चोरी चुपके चुपके में डॉन छोटा शकील का पैसा लगा है और पुलिस इस फिल्म के निर्माता नाजिम रिजवी को मोका कानून के तहत गिरफ्तार कर सकती है। मैं दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले शो "आज तक" में बतौर क्राईम रिपोर्टर हाल ही में नौकरी पर लगा था और डी.शिवानंदन से ये मेरी पहली मुलाकात थी रात के करीब 9 बजे क्राफर्ड मार्केट के सामने उनके दफ्तर में। शिवानंदन काफी गुस्सैल स्वभाव के माने जाते थे और उस वक्त मीडिया से भी उनकी अच्छी नहीं बनती थी। मुझे उनकी बाईट लेने का काफी दबाव था...नई नई नौकरी थी और मैं खाली हाथ लौटकर नहीं जाना चाहता था। मैं बडी देर तक शिवानंदन को बाईट देने के लिये मनाता रहा लेकिन वे ये कहकर बाईट देने से इंकार कर रहे थे कि मामले की तहकीकात अभी चल रही है ऐसे में अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया- "सर अगर आप नाजिम रिजवी से डरते हैं तो बिना उसका नाम लिये मुझे कैमरे पर बाईट दे दीजिये।" मेरे शब्द सुनकर शिवानंदन भडक तो काफी उठे लेकिन इससे मेरा काम भी हो गया। मुझे जैसी बाईट चाहिये थी, वैसे बाईट उन्होने दे दी...मैं क्राईम ब्रांच के दफ्तर से सुरक्षित वापस लौटने में भी कामियाब रहा।
उस एक मुलाकात के बाद शिवानंदन से बतौर क्राईम रिपोर्टर सैकडों बार हमारी मुलाकातें होतीं रहीं और बहुत जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन गये।

28 फरवरी 2011 को डी.शिवानंदन की पुलिस महकमें से विदाई भले ही किसी भी आम आईपीएस अफसर की तरह रही हो, लेकिन शिवानंदन का 35 साल का पुलिसिया करियर खास रहा है..एक्शन और चुनौतियों से भरा रहा है...उनकी इसी इमेज ने बॉलीवुड को भी अपनी ओर खींचा और कंपनी और अब तक 56 जैसी फिल्मों में शिवानंदन जैसे किरदार दिखाये गये। जब 90 के दशक में गैंगवार की वजह से मुंबई की सडकें खून से लाल हो रहीं थीं और हर दिन एक से दो लोग अंडरवर्लड की गोलियां का शिकार हो रहे थे तब डी. शिवानंदन को मुंबई क्राईम ब्रांच का मुखिया बनाया गया था। शिवानंदन ने महकमें से कुछ खास अफसरों को चुना और एनकाउंटर्स की रणनीति अपनाई। 238 गैंगस्टर पुलिस की गोलियों से मारे गये और साढे तीन हजार आरोपी मोका जैसे सख्त कानून के तहत सलाखों के पीछे भेजे गये। क्राईम ब्रांच प्रमुख के पद से तबादला होने के बाद शिवानंदन कुछ महीनों के लिये सीबीआई में रहे। नागपुर पुलिस कमिश्नर, ठाणे पुलिस कमिश्नर और राज्य खुफिया विभाग के प्रमुख का पदभार संभालने के बाद साल 2009 में उन्हें मुंबई का पुलिस प्रमुख बनाया गया।शिवानंदन की आखिरी पोस्टिंग महाराष्ट्र के डीजीपी के तौर पर हुई।

बतौर एक क्राईम रिपोर्टर शिवानंदन ने मेरी बडी मदद की। मेरे क्राईम शो रेड अलर्ट और शूट आउट के में दिखाई जाने वाली स्टोरीज के लिये न केवल उन्होने रिसर्च में साथ दिया बल्कि  शो का स्तर और प्रमाणिकता बनाये रखने के लिये अपनी टिप्पणियां भी देते थे। मुंबई के ज्यादातर हाई प्रोफाइल शूटआउट्स उन्ही के कार्यकाल में हुए और उन शूटआउट्स को अंजाम देनेवाले भी उन्ही के कार्यकाल में पकडे या मारे गये। शिवानंदन ने जिसे एक बार दोस्त बना लिया फिर वो उसके लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं ये बात मैने 19 नवंबर 2009 को देखी। विल्सन कॉलेज में उन्हें 26-11-2008 के आतंकी हमले पर लिखी गई मेरी किताब वे 59 घंटे के लोकार्पण के लिये आना था..लेकिन तारीख से ठीक एक दिन पहले उन्हें तेज बुखार आ गया। मैने 19 तारीख की सुबह उन्हें फोन किया। फोन उठाते ही उन्होने कहा- Jitendra.dont worry..i will keep my words..I will come for you whatever it may be.I am taking medicines & will try to get well for the evening function. फोन पर उनकी आवाज सुनकर ही पता चल रहा था कि वे काफी बीमार हैं और उन्हे बोलने में भी तकलीफ हो रही थी। मैने टेक केयर बोल कर फोन रख दिया। किस मुंह से मैं उन्हें शाम के कार्यक्रम में आने को कहता...मैने आस छोड दी थी कि शिवानंदन किताब के लोकार्पण के लिये आयेंगे..लेकिन मुझे उस वक्त सुखद आश्चर्य हुआ जब ठीक वक्त पर शिवानंदन विल्सन कॉलेज में कार्यक्रम में शरीक होने के लिये पहुंचे। मंच पर वे मेरे बगल में ही बैठे थे। मैने महसूस किया कि उस वक्त भी उन्हें तेज बुखार था जिसकी वजह से उन्हें हलकती कंपकंपी हो रही थी। इस हालत में भी शिवानंदन ने न केवल पूरे कार्यक्रम में आखिर तक मौजूद रहे बल्कि पूरे जोश के साथ भाषण भी दिया और 26-11 की पहली बरषी के बारे में पुलिसिया कार्यक्रमों की जानकारी भी दी। शिवानंदन बीमारी की वजह से पिछले 2 दिनों से दफ्तर नहीं गये थे और सारे कार्यक्रम उन्होने रद्द कर दिये थे। मैने अब तक की अपनी उम्र में दोस्ती निभाने की ऐसी मिसाल नहीं देखी।

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बुरे इंसान के साथ हुए बुरे अनुभव को भले ही किसी के साथ शेयर न किया जाए लेकिन अच्छे इंसान के साथ हुए अच्छे अनुभव को सबके साथ बांटना अच्छायीयत के लिए जरुरी है. डी. शिवानंदन को एक पुलिसिए के तौर पर तो हम भी जानते हैं लेकिन एक दोस्त के तौर पर तुम्हारा अनुभव लाजबाव है. इस अच्छे अनुभव को सच्चे मन से पब्लिक डॉमिन पर लाने के लिए थैंक्स!

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