Posts

Showing posts from 2013

A Brief Review of "Dalit Millionaires" (by Milind Khandekar)

Image
A fresh and positive way to begin the new year is to read this book, especially for those who feel that they are victim of circumstances and life has been unfair to them. With 15 interesting case studies, the book inspires to deal with life head on, brave the hostilities and have a positive approach towards life. The book is about those people who started their life with a scratch and made it big with their attitude and hardwork. Every page of the book generates feeling of optimism and inner strength. Translated in simple English, anybody with basic knowledge of the language can read it without referring to a dictionary. It is also like a guide book for aspiring businessmen. Reading this book is a delight for non fiction book buffs & also an antidote for those who are feeling low in life. The book is originally written in Hindi and has been translated in English.

भावनाओं से परे...बदल रही है राज ठाकरे की एमएनएस।

सियासत की जुबान सिर्फ शब्दों की नहीं होती है। इसे समझने के लिये शब्दों के बीच दिये जाने वाले संकेतों को पकडना होता है। बिना कहे की जाने वाली हरकतों पर गौर करना पडता है। बीते चंद दिनों से ऐसे ही कुछ इशारे दे रही है राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस। आक्रमक मराठी मुद्दे को अपनाकर महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर अपने कदम जमाने वाली एमएनएस बदलती नजर आ रही है। वक्त के साथ पुराने मुद्दे पर नरम रवैया अख्तियार करके नये मुद्दों की ओर बढती नजर आ रही है। क्या हैं बदलाव के संकेत ? बीते सोमवार को राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन को अपनी पार्टी के कार्यक्रम में बुलाया और उनके साथ मंच साझा किया। दोनो ने एक दूसरे की तारीफ की। राज ठाकरे ने बच्चन के साथ अपनी पुरानी कटुता गंगा में बहा देने का ऐलान किया। उनकी हिंदी पर पकड की प्रशंसा की। अगर इस एक कार्यक्रम की मिसाल देकर मैं ये कहने लगूं कि राज ठाकरे अब मराठी के मुद्दे पर नरम पड गये हैं या उत्तर भारतियों से उनका परहेज खत्म हो गया है तो जाहिर तौर पर ये जल्दबाजी होगी। हाल के वक्त में कुछ और भी ऐसी गतिविधियां एमएनएस की ओर से हुईं हैं जो यही इशारा करतीं हैं कि राज ठाकर

शिवसेना की अंतर्कलह : क्योंकि हर आदमी का कोई खास आदमी होता है...

Image
फिर कोई शिवसेना से अलग हुआ है और फिर वही एक नाम सामने आया है-मिलिंद नार्वेकर। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बाद जिसने भी शिवसेना छोडी उसने मिलिंद नार्वेकर को जरूर गरियाया। ताजा मामला है शिवसेना के पूर्व सांसद और दबंग नेता मोहन रावले का। इन्होने भी पार्टी से बाहर होने के पहले मिलिंद नार्वेकर की “ करतूतों ” का मीडिया के सामने भंडाफोड किया था। आखिर ये मिलिंद नार्वेकर है कौन जिसने महाराष्ट्र की सबसे ताकतवर सियासी पार्टियों में से एक शिवसेना के भीतर कोहराम मचा रखा है और जिसके बुरे बर्ताव का हवाला देकर कट्टर शिवसेना नेता भी पार्टी छोड रहे हैं ? कहने को तो मिलिंद नार्वेकर शिवसेना के कार्याध्यक्ष उदध्व ठाकरे का निजी सहायक है, लेकिन वो पार्टी में बहुत कुछ है। 1996 में उदध्व से जुडा मिलिंद नार्वेकर शिवसेना की रैलियों में मंच पर भाषण नहीं देता, वो जनसभाएं नहीं लेता, वो चुनाव नहीं लडता, वो टीवी चैनलों की बहस में हिस्सा नहीं लेता, उसकी तस्वीरें अखबारों में नहीं छपतीं, वो कोई बयान नहीं जारी करता, वो शिवसेना के हिंसक आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेता और न ही शिवसेना की ओर से

"द सीज "- 26/11 के 10 सच।

Image
26 नवंबर 2008 को मुंबई में जो आतंकी हमला हुआ था, उसे 5 साल पूरे हो रहे हैं। इन 5 सालों में उस हमले को लेकर तमाम किताबें लिखीं गईं, कई डॉक्यूमेंट्रिज बनाईं गईं, जांच रिपोर्ट्स वगैरह तैयार की गईं, लेकिन वो हमला इतना बडा था कि उससे जुडी तमाम बातों का अब तक पूरी तरह से खुलासा नहीं हो पाया है। यही वजह है कि हमले के 5 साल बाद भी उसे लेकर नई बातें सामने आ रहीं हैं, नये खुलासे हो रहे हैं। इसी कडी में 2 अंग्रेजी पत्रकारों की एक किताब सामने आई है- द सीज। इस किताब को पढने के बाद कम से कम 10 ऐसे सच सामने आते हैं, जिनका या तो अब तक खुलासा नहीं हुआ था या जिनपर ज्यादा गौर नहीं किया गया। अद्रीयान लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क नाम के दो अंग्रेजी पत्रकरों की ओर से लिखी गई ये किताब उन लोगों के बयान पर आधारित है जो 26-11 के हमले के दौरान ताज होटल में फंसे थे। पत्रकारों ने आतंकियों से लोहा लेने वाले पुलिसकर्मियों और एनएसजी कमांडोज से भी बातचीत की। दोनो पाकिस्तान में उन सभी आतंकियों के घर भी पहुंचे जो मुंबई हमले में शामिल थे।किताब में अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से मिली जानकारी भी शामिल की गई। इस पूरी कसर

डाईबिटीज: 200 साल जीने का वरदान !!!

“ बधाई हो। अब तुम 200 साल जी सकते हो ” । ये प्रतिक्रिया थी मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और मेरे मित्र डी.शिवानंदन की जब उन्हें ये पता चला कि मैं भी डाईबिटिक हूं। उनके लफ्ज सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ और लगा कि शायद वो कोई व्यंग कर रहे हैं। जो डाईबिटीज आज दुनिया के तमाम शहरी इलाकों में हौवा बन चुकी है और जिसे लोग साईलेंट किलर मानते हैं उसके होने से किसी की उम्र कैसे बढ सकती है ? शिवानंदन ने बात को स्पष्ट किया। उनका कहना था कि डाईबिटिज होने के बाद इंसान को अपनी जिंदगी में जिस अनुशासन की जरूरत पडती है अगर उस पर सख्ती से अमल किया जाये तो इंसान की उम्र और बढ सकती है। डाईबिटीज से होने वाले नुकसान को तो रोका ही जा सकता है उम्र के साथ आनेवाली दूसरी बीमारियों से भी बचा जा सकता है। करीब सालभर पहले ही डाईबिटिज ने मुझे अपनी गिरफ्त में लिया है। चूंकि मेरे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, वगैरह तमाम रक्त संबंध ी भी डाईबिटिक हैं तो मैं भी मानसिक तौर पर तैयार था कि एक न एक दिन मुझे भी डाईबिट ीज होना ही है...लेकिन डाईबिट ी ज इतनी जल्दी हो जायेगी इसका अंदाजा न था...लगा था और 8-10 साल बाद होगी। मेरी तर

'साहेब' का अधूरा ख्वाब: महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना।

Image
इस महीने शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के निधन की पहली बरषी है। जाने से पहले 86 साल के ठाकरे का एक सपना तो पूरा हो गया कि महाराष्ट्र के विधान भवन पर भगवा लहराये। 1995 में उनकी पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर एक बार सत्ता में आ पायी। 80 के दशक में हिंदुत्व का मुद्दा अपनाने के बाद बालासाहब को उम्मीद थी कि पार्टी महाराष्ट्र के बाहर भी अपने पैर पसारेगी और एक राष्ट्रीय पार्टी की शक्ल ले लेगी, लेकिन इस दिशा में कदम अधूरे मन से उठाये गये नजर आते हैं। शिवसेना की ओर से हिंदुत्व का मुद्दा अपनाने और बालासाहब की निजी छवि ने महाराष्ट्र के बाहर भी खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में कई युवाओं को आकर्षित किया। शिवसेना ने भी इस बात को प्रदर्शित किया कि वो गैर मराठियों के लिये खुली है और इसी के मद्देनजर साल 1993 में दोपहर का सामना नामक हिंदी सांध्यदैनिक निकाला और 1996 में मुंबई के अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लैक्स में उत्तर भारतीय महासम्मेलन का आयोजन किया। अगर महाराष्ट्र के बाहर किसी राज्य में शिवसेना को अधिकतम कामियाबी मिली तो वो राज्य था उत्तर प्रदेश, जहां पार्टी ने 1991 के चुनाव

'Saheb's Unfulfilled Dream: Shiv Sena Outside Maharashtra.

Image
This month will see the first death anniversary of Shiv Sena supremo Balasaheb Thackeray.  Before departing at the age of 86 years, he had seen at least one of his dreams fulfilled-saffron flag at Maharashtra ’s legislative assembly. Shiv Sena managed to attain power once in 199 5 by winning assembly elections in partnership with BJP. After adopting the ideology of Hindutwa in the decade of 80s Bal Thackeray also hoped to see his party spreading out of Maharashtra and eventually becoming a national party, but the efforts in this direction were half hearted. Shiv Sena’s adoption of Hindutwa ideology & Bal Thackeray’s personal charisma appealed to numerous youngsters outside Maharashtra, especially in Hindi speaking states like Uttar Pradesh, Delhi , Rajasthan & Jammu & Kashmir. Shiv Sena also displayed it openness for non Maharashtrians by launching a Hindi newspaper “Dopahar Ka Saamana” in 1993 and organizing “Uttar Bhartiya Mahasammelan” at Mumbai’s Andheri S

Why India needs an effective Witness Protection Programme?

Last week I appeared as a witness in special MCOCA court to depose on a case of firing by an underworld gang. Being a witness for the prosecution is tough, especially if you are deposing against an organized crime syndicate or a terrorist group. I have been witness for the prosecuting agencies in around half a dozen cases mostly related with Mumbai underworld. The Prosecuting agencies made me witness mostly for some of the extra judicial confessions which mafia gang bosses have done on phone to me in which they claimed responsibility for some high profile shootouts in the city of Mumbai . My depositions were damaging for the mafia & his gang members. Although, being aware of the risks of becoming a prosecution’s witness, I treat a police summon asking me to become a witness as a certificate for participating in the war against organized crime. Being a crime reporter for over a decade, I believe, becoming a witness is another opportunity to know underworld from a different persp

गवाहों की हिफाजत : अमेरिका से सीखे भारत।

बीते हफ्ते मुंबई की विशेष मकोका अदालत में अंडरवर्लड की ओर से साल 2011 में करवाये गये एक शूटआउट के सिलसिले में बतौर गवाह पेश हुआ। वैसे तो बीते 13-14 सालों में दर्जनों बडे अदालती मुकदमें बतौर पत्रकार मैने कवर किये हैं, लेकिन एक गवाह की हैसीयत से अदालत में पेशी के दौरान अलग ही अनुभव हुए। कठघरे में बैठे आरोपियों की लाल निगाहें घूर रहीं थीं, बचाव पक्ष के वकील  मेरी ओर देखकर आपस में खुसपुसाते थे फिर आरोपियों से आंखों के जरिये मेरी ओर इशारा करते थे, गवाही के लिये अपनी बारी आने के इंतजार में पहले से चल रहे एक अन्य मामले की बोरियत भरी बहस सुननी पडी और इस अनिश्चतता से भी दो चार होना पडा कि मेरी गवाही क्या इसी सुनवाई में ही पूरी हो जायेगी या फिर 2-3 दिन और बर्बाद होंगे ?  गवाही से पहले सरकारी वकील से चर्चा हुई जो महाराष्ट्र सरकार की ओर से बनाई गई उस कमिटी के सदस्य हैं जो ये सुझायेगी कि राज्य में गिरता हुआ Conviction Rate कैसे सुधारा जाये ( Conviction का मतलब पुलिस की ओर से पकडे गये आरोपी का अदालत में दोषी करार दिया जाना।) महाराष्ट्र का conviction rate फिलहाल 7.8 फीसदी ही है। बाकी सारे मामलों

फिल्म "शाहिद": जांच एजेंसियों की कडवी हकीकत।

Image
बीते रविवार को फिल्म “ शाहिद ” देखी। फिल्म को तमाम समीक्षकों ने खूब सराहा है और अपने सितारों वाले मापदंड के मुताबिक इसे कई सितारों से नवाजा है...पर मैं समीक्षकों की ओर से की गई फिल्म की प्रशंसा से प्रभावित होकर इस देखने नहीं गया था। दरअसल फिल्म जिस वकील शाहिद आजमी की कहानी पर आधारित है, वो मेरा अच्छा परिचित था। बतौर पत्रकार मैंने शाहिद का कई बार इंटरव्यू लिया, अदालत में उसके तर्क-कुतर्क सुने और अदालत के गलियारों में वक्त मिलने पर चाय की चुस्कियों के साथ गपशप भी की। शाहिद और मैं हमउम्र ही थे। एक शाम अचानक खबर आई कि शाहिद की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। हत्या से चंद दिनों पहले ही एक मित्र के गृह प्रवेश के मौके पर उससे देर तक बात हुई थीं, जिसमें उसने बताया था कि किस तरह से उसकी निजी जिंदगी चुनौतीपूर्ण हो गई थी और किन हालातों में उसे अपनी पत्नी से तलाक लेना पडा। मैं जानना चाहता था कि फिल्मकार ने उसकी कहानी को किस तरह से पेश किया है। ये उम्मीद भी थी कि शायद इस शख्स के बारे में कुछ और भी दिलचस्प जानने को मिल जाये जो कम उम्र में ही आतंकवाद से लेकर पत्रकारिता और वकालत का तजुर्बा हासिल क

अपना गुडलक किधर है भाय?- आर.टी.आई का काला सच।

बीते हफ्ते खबर आई कि एक आर.टी.आई कार्यकर्ता की राजस्थान में ग्राम सरपंच ने पीट पीटकर हत्या कर दी क्योंकि उसने सरपंच के कई घोटालों का पर्दाफाश किया था। ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी आर.टी.आई कार्यकर्ता को जनहित के लिये उसकी ओर से जुटाई गई जानकारी के लिये मारा गया हो। आर.टी.आई ने जहां एक ओर बडी हद तक सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार कम करने में मदद की है तो वहीं सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले हिंसा की भी भेंट चढे हैं। जाहिर है इस तरह की वारदातें इस क्रांतिकारी कानून का इस्तेमाल करने वालों के खौफजदा भी कर रहीं है और हतोत्साहित भी...लेकिन आर.टी.आई कार्यकर्ताओं का एक अलग वर्ग भी है, एक अलग चेहरा भी है जिससे मैं आपको मुखातिब कराना चाहता हूं। आर.टी.आई का ये चेहरा खासकर मुंबई में देखने मिलता है। मुंबई का लगभग हर बिल्डर एक गुप्त रजिस्टर रखता है। इस रजिस्टर में ऐसे लोगों के नाम की लिस्ट होती है जिन्हें किसी इमारत बनाने के प्रोजक्ट के दौरान बतौर रिश्वत उन्हें एक तय रकतम देनी पडती है। रजिस्टर में एक लिस्ट होती है स्थानीय राजनेताओं की जिनमें इलाके के पार्षद, विधायक और तमाम बडी पार्टियों

Where is my goodluck bro? Black truth of RTI in Mumbai.

Last week news came that a RTI activist was murdered by a village head whose several scams the activist had exposed. This is not the first case where such an activist has been killed for the kind of information which he sought. Although, RTI to a large extent has helped in limiting corruption in government offices, the activist applying this law to seek information have been victims of violence. Obviously, such incidents are terrorizing & discouraging activists…but there is another section of RTI activists which is very different from this. They have a different face which I want to introduce readers today. This face of RTI activists is especially seen in Mumbai. Almost, all builders in Mumbai maintain a secret register. This register consists name of those people whom the builder has to pay money as bribes while working on a building construction project. In this register there is a list of local politicians which includes local corporator, MLA & local office bearers of

ठहरो...ठहरो...रामलीला अभी बाकी है।

Image
दशहरे का दिन दस दिवसीय रामलीला आयोजन का आखिरी दिन होता है। इस दिन रामलीला शाम 7 या 8 बजे शुरू होने के बजाय 6 या 7 बजे ही शुरू हो जाती है। दर्शकों की सबसे ज्यादा भीड रामलीला मैदान में इसी दिन दिखाई देती है। मैदान के एक किनारे रंगबिरंगा और भीमकाय रावण का पुतला राख में तब्दील होने के लिये तैयार रहता है। आमतौर पर इस दिन हनुमानजी के हाथों अहिरावण वध का प्रसंग दिखालाया जाता है और उसके बाद होता है राम और रावण का महायुद्ध। विभीषण की सलाह पर राम , रावण की तोंद का निशाना लगाते हैं और रावण ढेर हो जाता है। कई रामलीला मंडलियां रावण की मौत से पहले उस प्रसंग को भी दिखातीं है जिसमें राम , लक्ष्मण से कहते हैं कि वो अंतिम सांसे गिन रहे रावण से राजनीति की शिक्षा लेकर आयें। रावण के मरते ही सभी दर्शकों के चेहरे मंच से हटकर मुड जाते हैं रावण के पुतले की तरफ। आसमान में रंग बिरंगी आतिशबाजी शुरू हो जाती है। बम पटाखों की गर्जना असत्य पर सत्य की विजय की सालाना घोषणा करती है। रावण के पुतले में जडे आतिशबाजी के तमाम आईटम सक्रीय हो जाते हैं और कुछ मिनटों में ही बीते दस दिनों की मेहनत से तैयार की गई ये कलाकृत