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Showing posts from October, 2013

Why India needs an effective Witness Protection Programme?

Last week I appeared as a witness in special MCOCA court to depose on a case of firing by an underworld gang. Being a witness for the prosecution is tough, especially if you are deposing against an organized crime syndicate or a terrorist group. I have been witness for the prosecuting agencies in around half a dozen cases mostly related with Mumbai underworld. The Prosecuting agencies made me witness mostly for some of the extra judicial confessions which mafia gang bosses have done on phone to me in which they claimed responsibility for some high profile shootouts in the city of Mumbai . My depositions were damaging for the mafia & his gang members. Although, being aware of the risks of becoming a prosecution’s witness, I treat a police summon asking me to become a witness as a certificate for participating in the war against organized crime. Being a crime reporter for over a decade, I believe, becoming a witness is another opportunity to know underworld from a different persp

गवाहों की हिफाजत : अमेरिका से सीखे भारत।

बीते हफ्ते मुंबई की विशेष मकोका अदालत में अंडरवर्लड की ओर से साल 2011 में करवाये गये एक शूटआउट के सिलसिले में बतौर गवाह पेश हुआ। वैसे तो बीते 13-14 सालों में दर्जनों बडे अदालती मुकदमें बतौर पत्रकार मैने कवर किये हैं, लेकिन एक गवाह की हैसीयत से अदालत में पेशी के दौरान अलग ही अनुभव हुए। कठघरे में बैठे आरोपियों की लाल निगाहें घूर रहीं थीं, बचाव पक्ष के वकील  मेरी ओर देखकर आपस में खुसपुसाते थे फिर आरोपियों से आंखों के जरिये मेरी ओर इशारा करते थे, गवाही के लिये अपनी बारी आने के इंतजार में पहले से चल रहे एक अन्य मामले की बोरियत भरी बहस सुननी पडी और इस अनिश्चतता से भी दो चार होना पडा कि मेरी गवाही क्या इसी सुनवाई में ही पूरी हो जायेगी या फिर 2-3 दिन और बर्बाद होंगे ?  गवाही से पहले सरकारी वकील से चर्चा हुई जो महाराष्ट्र सरकार की ओर से बनाई गई उस कमिटी के सदस्य हैं जो ये सुझायेगी कि राज्य में गिरता हुआ Conviction Rate कैसे सुधारा जाये ( Conviction का मतलब पुलिस की ओर से पकडे गये आरोपी का अदालत में दोषी करार दिया जाना।) महाराष्ट्र का conviction rate फिलहाल 7.8 फीसदी ही है। बाकी सारे मामलों

फिल्म "शाहिद": जांच एजेंसियों की कडवी हकीकत।

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बीते रविवार को फिल्म “ शाहिद ” देखी। फिल्म को तमाम समीक्षकों ने खूब सराहा है और अपने सितारों वाले मापदंड के मुताबिक इसे कई सितारों से नवाजा है...पर मैं समीक्षकों की ओर से की गई फिल्म की प्रशंसा से प्रभावित होकर इस देखने नहीं गया था। दरअसल फिल्म जिस वकील शाहिद आजमी की कहानी पर आधारित है, वो मेरा अच्छा परिचित था। बतौर पत्रकार मैंने शाहिद का कई बार इंटरव्यू लिया, अदालत में उसके तर्क-कुतर्क सुने और अदालत के गलियारों में वक्त मिलने पर चाय की चुस्कियों के साथ गपशप भी की। शाहिद और मैं हमउम्र ही थे। एक शाम अचानक खबर आई कि शाहिद की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। हत्या से चंद दिनों पहले ही एक मित्र के गृह प्रवेश के मौके पर उससे देर तक बात हुई थीं, जिसमें उसने बताया था कि किस तरह से उसकी निजी जिंदगी चुनौतीपूर्ण हो गई थी और किन हालातों में उसे अपनी पत्नी से तलाक लेना पडा। मैं जानना चाहता था कि फिल्मकार ने उसकी कहानी को किस तरह से पेश किया है। ये उम्मीद भी थी कि शायद इस शख्स के बारे में कुछ और भी दिलचस्प जानने को मिल जाये जो कम उम्र में ही आतंकवाद से लेकर पत्रकारिता और वकालत का तजुर्बा हासिल क

अपना गुडलक किधर है भाय?- आर.टी.आई का काला सच।

बीते हफ्ते खबर आई कि एक आर.टी.आई कार्यकर्ता की राजस्थान में ग्राम सरपंच ने पीट पीटकर हत्या कर दी क्योंकि उसने सरपंच के कई घोटालों का पर्दाफाश किया था। ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी आर.टी.आई कार्यकर्ता को जनहित के लिये उसकी ओर से जुटाई गई जानकारी के लिये मारा गया हो। आर.टी.आई ने जहां एक ओर बडी हद तक सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार कम करने में मदद की है तो वहीं सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले हिंसा की भी भेंट चढे हैं। जाहिर है इस तरह की वारदातें इस क्रांतिकारी कानून का इस्तेमाल करने वालों के खौफजदा भी कर रहीं है और हतोत्साहित भी...लेकिन आर.टी.आई कार्यकर्ताओं का एक अलग वर्ग भी है, एक अलग चेहरा भी है जिससे मैं आपको मुखातिब कराना चाहता हूं। आर.टी.आई का ये चेहरा खासकर मुंबई में देखने मिलता है। मुंबई का लगभग हर बिल्डर एक गुप्त रजिस्टर रखता है। इस रजिस्टर में ऐसे लोगों के नाम की लिस्ट होती है जिन्हें किसी इमारत बनाने के प्रोजक्ट के दौरान बतौर रिश्वत उन्हें एक तय रकतम देनी पडती है। रजिस्टर में एक लिस्ट होती है स्थानीय राजनेताओं की जिनमें इलाके के पार्षद, विधायक और तमाम बडी पार्टियों

Where is my goodluck bro? Black truth of RTI in Mumbai.

Last week news came that a RTI activist was murdered by a village head whose several scams the activist had exposed. This is not the first case where such an activist has been killed for the kind of information which he sought. Although, RTI to a large extent has helped in limiting corruption in government offices, the activist applying this law to seek information have been victims of violence. Obviously, such incidents are terrorizing & discouraging activists…but there is another section of RTI activists which is very different from this. They have a different face which I want to introduce readers today. This face of RTI activists is especially seen in Mumbai. Almost, all builders in Mumbai maintain a secret register. This register consists name of those people whom the builder has to pay money as bribes while working on a building construction project. In this register there is a list of local politicians which includes local corporator, MLA & local office bearers of

ठहरो...ठहरो...रामलीला अभी बाकी है।

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दशहरे का दिन दस दिवसीय रामलीला आयोजन का आखिरी दिन होता है। इस दिन रामलीला शाम 7 या 8 बजे शुरू होने के बजाय 6 या 7 बजे ही शुरू हो जाती है। दर्शकों की सबसे ज्यादा भीड रामलीला मैदान में इसी दिन दिखाई देती है। मैदान के एक किनारे रंगबिरंगा और भीमकाय रावण का पुतला राख में तब्दील होने के लिये तैयार रहता है। आमतौर पर इस दिन हनुमानजी के हाथों अहिरावण वध का प्रसंग दिखालाया जाता है और उसके बाद होता है राम और रावण का महायुद्ध। विभीषण की सलाह पर राम , रावण की तोंद का निशाना लगाते हैं और रावण ढेर हो जाता है। कई रामलीला मंडलियां रावण की मौत से पहले उस प्रसंग को भी दिखातीं है जिसमें राम , लक्ष्मण से कहते हैं कि वो अंतिम सांसे गिन रहे रावण से राजनीति की शिक्षा लेकर आयें। रावण के मरते ही सभी दर्शकों के चेहरे मंच से हटकर मुड जाते हैं रावण के पुतले की तरफ। आसमान में रंग बिरंगी आतिशबाजी शुरू हो जाती है। बम पटाखों की गर्जना असत्य पर सत्य की विजय की सालाना घोषणा करती है। रावण के पुतले में जडे आतिशबाजी के तमाम आईटम सक्रीय हो जाते हैं और कुछ मिनटों में ही बीते दस दिनों की मेहनत से तैयार की गई ये कलाकृत