सुनो कमिश्नर। तुम्हारा डंडा यहां नहीं चलेगा !!!


खाप पंचायतों को नाहक ही बदनाम किया गया है। ये हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। एक गोत्र में विवाह के विरोध के मामले में मैं खाप पंचायतों के साथ हूं
ये बोल हैं मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डॉ.सत्यपाल सिंह के। बीजेपी के टिकट पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत से चुनाव लड रहे सत्यपाल सिंह, जैसी हवा वैसी दुआ वाली नीति अपना रहे हैं। बतौर क्राईम रिपोर्टर सत्यपाल सिंह को मैने खाकी वर्दी पहने, सुरक्षा कर्मियों से घिरे, मातहतों का सैल्यूट लेते हुए मुंबई में बडे रौब के साथ चलते देखा है। आज उन्ही सत्यपाल सिंह को भगवा शाल पहने, जाटों के बीच ठेठ देहाती बोली बोलते हुए, गन्नो के ढेर के बीच बैठ कर उसके रस की चुस्कियां लेते देखना दिलचस्प अनुभव था। जब सत्यपाल सिंह ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दिया उस वक्त उनकी सर्विस को और 2 साल बाकी थे, लेकिन जब बीजेपी ने उनके पैदाइशी जिले बागपत से टिकट देने की पेशकश की तो वर्दी उन्हें हल्की नजर आने लगी। सत्यपाल सिंह के साथ इन दिनों उनकी बेटी चारूप्रज्ञा और बेटा प्रक्रेत भी गांव गांव घूमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सत्यपाल के मुताबिक वे इलाके के विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड रहे हैं।

जिस विकास की बात सत्यपाल और यहां के दूसरे उम्मीदवार कर रहे हैं, उसकी वाकई बागपत को जरूरत नजर आती है। बागपत, राजधानी दिल्ली से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन दिल्ली से यहां तक पहुंचते पहुंचते हमें 3 घंटे लग गये। यहां की सडकों पर चलना नर्क का अनुभव करने जैसा था। स्थानीय लोगों से बात की तो कई और भी समस्याओं का पता चला। बिजली की समस्या ने न केवल इलाके में उद्योगों को प्रभावित किया है, खेती पर भी इसका असर पडा है। वैसे अब तक इस सीट का फैसला जाट वोटरों ने किया है। क्षेत्र के साढे 14 लाख वोटरों में ज्यादातर जाट हैं। दूसरा बडा तबका मुसलिम वोटरों का है।1989 तक जाटों के सबसे बडे नेता चौधरी चरणसिंह यहां से सांसद थे, जिनके बाद उनके बेटे अजीत सिंह बीते 25 सालों से इस सीट पर वर्चस्व कायम किये हुए हैं। अपवाद सिर्फ 1998 का चुनाव रहा जब एक साल के लिये बीजेपी के उम्मीदवार शास्त्री यहां से सांसद चुने गये। यहां की 70 फीसदी आबादी किसानों की है।

अजीत सिंह जाट-मुसलिम वोटरों के सहारे अब तक यहां से जीतते आये हैं, लेकिन ये जानना दिलचस्प होगा कि क्या मुजफ्फनगर के दंगों का असर यहां होगा? क्या मुसलमान राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख अजीत सिंह को वोट देंगे या फिर उनका झुकाव समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी या आम आदमी पार्टी की ओर होगा? सत्यापाल सिंह भी जाट हैं और ये देखना रोमांचक होगा कि क्या वे अजीत सिंह के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा पाते हैं?

अजीत सिंह अपनी सभाओं में ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि सत्यपाल सिंह की उम्मीदवारी से उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा। हाल ही में एक चुनावी सभा में उन्होने कहा- सुना है कोई कमिश्नर खडा हुआ है यहां। सुनो कमिश्नर यहां तुम्हारा डंडा नहीं चलेगा
इलाके के विकास और खस्ताहाल सडकों के मुद्दे पर अजीत सिंह का कहना था कि ये उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। विधानसभा चुनावों में जब लोग आर.एल.डी की सरकार चुनेंगे तब ही इलाके का विकास होगा।

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सौमेंद्र ढाका के मुताबिक सभी पार्टियां एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहीं हैं। आर.एल.डी के मौजूदा सांसद अजीत सिंह यूपीए का हिस्सा हैं, विधायक बसपा के हैं और राज्य में सरकार सपा की है, लेकिन इसके बावजूद किसी ने इलाके का विकास नहीं किया।


बागपत शहर के नाम के बारे में बताया जाता है कि इस जगह का नाम बागपत इसलिये पडा क्योंकि सैकडों साल पहले यहां पर बाघ देखे जाते थे। अब यहां बाघ तो नहीं दिखते, लेकिन 2 सिंहों की लडाई जरूर देखी जा रही है। इस लडाई में अजीत सिंह जीतते हैं या सत्यपाल सिंह या फिर कोई तीसरा ही बाजी मार ले जाता है ये जानने के लिये 16 मई तक का इंतजार करना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

#Bombayphile Telgi Scam: Crime Reporting In Mumbai 20 Years Ago

नागरिक बनो, भक्त नहीं!

#Bombayphile : The Cosmopolitanism of Mumbai And Its Aberrations