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Showing posts from June, 2015

छगन भुजबल : राजनेता से अभिनेता तक

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मुंबई में मानसून आ गया है, लेकिन लगता है कि जितना पानी बरसा है उससे ज्यादा एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल पर आरोपों की बारिश हुई है। महाराष्ट्र सदन घोटाला, आय से ज्यादा संपत्ति, फर्जी डिग्री, पद का दुरूपयोग कर बिल्डर को सरकारी जगह देने, निवेशकों से ठगी करने जैसे आरोप भुजबल पर हाल के दिनों में लगे हैं। ऐसे आरोपों को लेकर जांच एजेंसियां भी हरकत में आईं हुई दिख रहीं हैं। महाराष्ट्र की सियासत में जो सबसे दिलचस्प चेहरें हैं, उनमें से एक छगन भुजबल मुझे नजर आते हैं। बतौर पत्रकार कई मौकों पर भुजबल से मुलाकात हुई और इन मुलाकातों ने मेरी नजर में उनकी जो इमेज बनाई है वो बहुरंगी है। प्रतिशोधी छगन भुजबल (Avenger Bhujbal) छगन भुजबल में बदला लेने की जबरदस्त भावना है। अगर किसी ने भुजबल को हानि पहुंचाई है तो भुजबल मौका पडने पर उसे नहीं छोडते। भुजबल ने खुद को राजनीति में लाने वाले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को भी नहीं छोडा। 1991 में शिवसेना से बगावत करने के बाद से ही भुजबल बाल ठाकरे के निशाने पर थे। भुजबल को सबक सिखाने का मौका ठाकरे को तब मिला जब 1995 में बीजेपी-शिवसेना की गठबंधन सरकार महाराष

यादों की विक्टोरिया...

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घोडे मुंबई की पहचान से दो तरह से जुडे थे। एक महालक्ष्मी रेसकोर्स में होने वाली घोडों की दौड की वजह से जिनमें करोडों का सट्टा लगता है और दूसरा मुंबई में चलनेवाली विक्टोरिया की वजह से। महालक्ष्मी रेसकोर्स में घोडे अब भी दौडते हैं, लेकिन विक्टोरिया का दौर खत्म हो चुका है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पशू क्रूरता विरोधी आंदोलकों की दलीलों के आधार पर विक्टोरिया को बैन कर दिया है और सालभर के भीतर मुंबई शहर से विक्टोरिया पूरी तरह से गायब हो जायेंगीं। वैसे मुंबई में विक्टोरिया का अंत इस अदालती आदेश के काफी पहले हो चुका था। जो विक्टोरिया शहर की नब्ज का हिस्सा थीं, वो अबसे 2 दशक पहले ही सडकों पर से गायब हो चुकीं थीं। इन दिनों आप नरीमन पॉइंट और गेटवे औफ इंडिया पर जो चमकती दमकती घोडागाडियां देखते हैं, वे सिर्फ मनोरंजन के लिये हैं, पर्यटकों को लुभाने के लिये हैं। असली विक्टोरिया मुंबई में यातायात का एक अहम माध्यम थी, खासकर पुरानी मुंबई के इलाकों में ठीक उसी तरह जैसे टैक्सी, ऑटो, बस वगैरह हैं। जैसे आज ऑटोरिक्शा सिर्फ मुंबई के उपनगरों में ही नजर आते हैं, माहिम और सायन से दक्षिण मुंबई की तरफ उनका आना

ब्लॉग की ताकत से किसकी नींद हराम?

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(मई 2015 में कोलंबो, श्रीलंका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मलेन में मेरे संबोधन के अंश।) सम्मानीय दोस्तों, इस अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में शिरकत करते हुए मुझे काफी खुशी हो रही है। अलग अलग राष्ट्रों में बसे ब्लॉगर्स बिरादरी के सदस्यों से परिचय का ये एक बेहतरीन मौका है। इस मौके पर मुझे कमी खल रही है बांग्लादेश के हमारे दिवंगत साथी अविजित रॉय और वशीकुर रहमान बाबू की, जिनकी कट्टरपंथियों ने इसी साल हत्या कर दी। अविजित और वशीकुर ने खुदको अभिव्यक्त करने के लिये ब्लॉगिंग को अपना माध्यम बनाया था। वे खुली सोच के लोग थे, नई सोच के लोग थे, रूढीवादियों का विरोध करते थे और इसी की कीमत उन्होने अपनी जान देकर अदा की। बांग्लादेश में ब्लॉगरों की हत्याएं दुखद हैं और चिंता का विषय भी हैं, लेकिन इसने एक बात को रेखांकित किया है कि उस देश में ब्लॉग अभिव्यकित का एक ताकतवर माध्यम बनकर उभरा है। इतना ताकतवर कि कट्टरपंथियों और चरमपंथियों को उसके प्रभाव से खतरा महसूस होने लगा है और यही वजह है कि ब्लॉग पर उठने वाली आवाजों को दबाने के लिये वे ब्लॉगर्स की हत्या कर रहे हैं। साल 2013 से अब तक बां